भरोसा भी क्या चीज है
बना ही है टूटने के लिए
इसकी फितरत भी क्या कांच के गिलास की सी है
कांच टूट कर हथियार बन जाता है दूसरों के लहू में नहाता है
भरोसा टूटकर खुद शिकार बन जाता है खुद के लहू में नहाता है
दिलों के टूटने, भरोसा छूटने पर गहरे निशान छूट जाते हैं
कुछ है खन की आवाज के साथ टूट जाते है कुछ है जो बे आवाज ही बिखर जाते है
कुछ है जो गहरे जख्म देने की ताब रखते हैं कुछ है जो जख्मों की गहराइयों में डूब जाते हैं
भरोसा भी क्या चीज है
बना ही है टूटने के लिए
मगर यह मरता भी नहीं है सिर्फ इंसान और जगह बदलता है
कुछ मजबूरियां है जिंदगी की जो सांसे है तो भरोसा है
भरोसा भी क्या चीज है बना ही है टूटने के लिए
अल्फ़ाज़-ए-रूह