Alfaaz-e-rooh

अल्फ़ाज़-ए-रूह

“अल्फ़ाज़-ए-रूह” “Alfaaz-e-rooh” यह वह शब्द है जो मस्तिष्क से उतारकर दिल से होते हुए आत्मा में पैबस्त  हो जाते है जिन्हें मैं कागज पर उतारने का प्रयास करता हूं। यह वह आवाज है जो दुनिया में  मेरे अस्तित्व की गवाह है जो बदन के मिट जाने पर भी कायम रहे, ऐसी मेरी कामना है। मेरा परिचय फकीरा” (तख़ल्लुस) हमेशा कायम रहे। 

दिल की भावनाओं को शब्दों में व्यक्त किया है उन पंक्तियों को तस्वीरों में सजाया है तथा साथ ही जिन भावनाओं और विचारों से प्रेरित होकर के यह पंक्तियां तस्वीरों में सजाई है उसको स्पष्ट करने के लिए साथ ही संक्षिप्त लेख भी प्रस्तुत है। चाहत है कि आप देखें और सराहे है, यदि अच्छी लगे तो अपनो के साथ बाँटे / शेयर करें,  धन्यवाद 

 

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यायावर

यायावर को अपने नाम की मानिंद बहती हवा और बहते पानी सा किरदार चाहिए जो मंजिल पर पहुंचता जरूर है पर ठहरता नहीं, जहां किसी तख्त या सिंहासन की दरकार नहीं है जो अपनी मौज में ही रहते हैं। डरता है मगरूरियत से कहीं दोस्तों को दुश्मन ना नजर आने लगे और दोस्तों को दुश्मन ना समझने लगे, डरता है आंखों के सामने छा जाने वाली धुंध से जो तरक्की पा लेने पर अक्सर आ जाती है। ऊंचे मंच चाहिए जरूर मगर ठहराव मंजूर नहीं है, मंच पर अपना किरदार निभाने के बाद भीड़ का आनंद भी चाहिए, नसीब है दरिया का समंदर में मिल जाना ऐसा नसीब चाहिए। 

Alfaaz-e-Rooh यायावर
Alfaaz-e-Rooh सचाई

सचाई

इंसान जब इस दुनिया में जन्म लेता है तब इस दुनिया के नियम कायदों से अनभिज्ञ होता है परंतु समय के साथ-साथ जैसे जैसे वह बड़ा होता है तो उम्र के हिसाब से और कई बार उससे कहीं ज्यादा उसे जो अनुभव होते हैं उसकी मासूमियत दूसरे शब्दों में उसका मूल स्वभाव धीरे-धीरे विस्मृति (मिटाता जाता) होता जाता है। तब उसे उसके मूल स्वभाव के आधार पर मिली उसकी भावनाएं खत्म होने लगती है और वह मशीनी मानव के तौर पर जीने लगता है तब उसकी अंतरात्मा की आवाज ना दूसरों को सुनाई देती है ना ही वह खुद सुन पाता है। खुद को बहलाता है। तब वह अपने सपनों को नींद में आए सपनों जैसा मान लेता और अपना नसीब मानकर खामोश हो जाता है।

इंसान

इस सृष्टि में और इस धरती पर इंसान का वजूद इस सृष्टि में और इस धरती पर मौजूद तत्वों से ही बना है। जैसा की प्रचलित है कि मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना जैसे की मिट्टी, पानी, वायु, अग्नि और आकाश। “पंच तत्वों से बना शरीरा”।  आत्मा का प्रवेश पाते ही चेतन हो जाता है। परंतु उसके साथ ही एक चीज और जुड़ जाती है यह है उसके गुण और अवगुण। कोई भी इंसान सिर्फ गुणो से युक्त नहीं होता है उसके अंदर कुछ ना कुछ अवगुण भी होते हैं जिसको परिस्थितियों के आधार पर सही और गलत कहा जा सकता है, कई बार गुण को गुण कहना और अवगुण को अवगुण कहना बड़ा ही विरोधाभासी हो जाता है क्योंकि समान विचारधारा के व्यक्तियों के लिए वही चीज सही हो सकती है जो असमान विचारधारा के व्यक्तियों के बीच गलत हो सकती है, गुण और अवगुण के आधार पर किसी भी इंसान के साथ इंसानी बर्ताव न किया जाना इंसानियत के दायरे में नहीं आता है। 

Alfaaz-e-Rooh इंसान
Alfaaz-e-Rooh जफ़ा

जफ़ा

वफा का विपरीत शब्द है जफ़ा। हर व्यक्ति अपने करीबियों से वफा (वादा निभाना) की उम्मीद करता है यह मायने नहीं रखता है कि उसके करीबी का लिंग क्या है वह स्त्री है की पुरुष है अक्सर तोहमते (आरोप) पुरुष स्त्री पर लगता है स्त्री पुरुष में लगती है वादे न निभाने को लेकर। अपने चाहने वाले से पाए हुए ज़ख्मों का असर  सीधे व्यक्ति के दिल पर होता है।तब जब भी उसके बारे में वह जिक्र करता है तब वह उसे बातों में करें या कागज पर इबारतों में करें तब उसके जहेन पर लिखी हुई दर्द की यादें ताजा हो जाती है। 

धरती

हर इंसान जो इस धरती पर पैदा होता है इसी धरती पर अपनी पूरी जिंदगी जीता है और फिर इसी जिंदगी में समाप्ति पर इसी धरती पर दफन हो जाता है। अपनी जन्मभूमि को माता के नाम से पुकारता है कहीं-कहीं पर इस धरती को पिता का नाम भी मिला है। इसी इंसान ने इस धरती पर इसके हरे भरे वनों को, इस पर शुद्ध पानी के स्रोतों को तथा इसकी हवाओं को दूषित किया है इसके जंगलों को समाप्त करके अपने प्रगतिशील होने का दावा करता है, बोतलों में पानी को बेचता है और अपने आप को बड़ा व्यापारी समझता है हवाओं को भी सिलेंडरों में बंद कर बेचने की तैयारी में है इसकी बानगी करोना काल में देखी जा चुकी है फिर भी अपने को सभ्य और प्रगतिशीलहोने के दावे से पीछे नहीं हटता है। 

Alfaaz-e-Rooh धरती
Alfaaz-e-Rooh भूख

भूख

इंसान इस धरती पर सबसे बुद्धिमान प्राणी माना जाता है धरती पर हर प्राणी को सृष्टि ने उसके जीने के लिए पर्याप्त संसाधन उसे उपलब्ध कराए हैं और उसे हर वह क्षमता प्रदान की है जिससे कि वह उसकी बनाई दुनिया में बेहतर तरीके से जी सके जैसे की पंछियों को उड़ाने के लिए पंख दिए हैं जिससे कि वह पूरा आसमान अपनी उड़ान से नाप सके, इस तरह से इंसान को पूरी दुनिया को जानने समझने के लिए पैर दिए हैं, मगर अफसोस कभी पेट की भूख के लिए तो कभी लालच की भूख के लिए और न जाने किन-किन कारणों  से वह एक ही जगह टिका रहना चाहता है। मगर सच यह भी है कि पेड़ों को पैर नहीं मिले हैं तो क्या इंसान वृक्षों के समान हो जाने लायक है एक बार सोचिएगा जरूर। 

जीवनसाथी

वैवाहिक जीवन के सफर की कुछ यादें पंक्तियों में पिरोई है।

Alfaaz-e-Rooh जीवनसाथी
Alfaaz-e-Rooh लम्हा

लम्हा

इंसान की जिंदगी का हर पल वह चाहे या ना चाहे वह बीतता जाता है।मगर अक्सर कई बार इंसान कभी अपने बीते हुए पलों में और कभी आने वाले पलों में जीता है। हम हमारी जिंदगी के मौजूदा पल मे कई बार पिछली बातों को याद करते हुए या कभी आने वाले वक्त में कैसा होगा इस पर चर्चा करते हुए जरूरत से ज्यादा अपना काफी समय जाया करते हैं, मगर मौजूदा पल में क्या करना है अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए यह भूल जाते हैं मेरा प्रयास अपने लिए यह है कि मंजिल का रास्ता देखकर उसे पर बढ़ते हुए चले जाना है हां यह जरूर है की  बीच-2  में हम सही रास्ते पर हैं या नहीं यदि इसे देख लिया जाए तो कुछ भी गलत नहीं है।  

चाँद

चाँद और उसके प्रतीकात्मक महत्व को गहराई से रूबरू होने का वक्त हैं। चाँद, जो रात में अपनी खूबसूरती और चमक से सभी का ध्यान आकर्षित करता है, वास्तव में सूरज की रोशनी के बिना अधूरा है। किसी भी चीज़ की वास्तविकता को समझने के लिए दृष्टिकोण और संदर्भ का महत्व है। अंतरिक्ष के कालेपन में चाँद या ग्रह तब ही नजर आते हैं, जब उनके ऊपर सूरज की रोशनी पड़ती है।

हमें किसी भी चीज़ पर घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि हर चीज़ की अपनी सीमाएँ होती हैं। चाँद, जितना खूबसूरत लगता है, उसमें दाग भी हैं, जो तब नजर आते हैं जब रोशनी पूरी तरह से उस पर पड़ती है। यह जीवन का भी एक गहरा सत्य है—हर चीज़ में अच्छाइयों के साथ कमियां भी होती हैं, और वह दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि हम उसे कैसे देखते हैं।

चाँद को लोग अलग-अलग रूप में देखते हैं। किसी के लिए यह एक खिलौना है, किसी के लिए मामा, और किसी के लिए महबूब। इससे यह साफ होता है कि किसी भी चीज़ का महत्व लोगों के नजरिए पर निर्भर करता है।जीवन में चीजों को देखने का तरीका ही उनके मूल्य को तय करता है। चाँद की तरह, हम सभी के जीवन में भी दाग और चमक दोनों होते हैं—महत्वपूर्ण यह है कि हम उसे किस दृष्टिकोण से देखते हैं।

Alfaaz-e-Rooh चाँद
Alfaaz-e-rooh मशरूफ दुनिया

मशरूफ दुनिया

आज की दुनिया में हर व्यक्ति अपने काम, इच्छाओं और स्वार्थों में इतना मशरूफ हो गया है कि किसी और की आवाज सुनने का समय नहीं है। हर कोई अपनी धुन में मस्त है, अपनी समस्याओं और उद्देश्यों में डूबा हुआ है। ऐसे में, विचारशील व्यक्ति सच्चाई या ज्ञान की आवाज उठाने का प्रयास करता है, तो वह अक्सर अनसुनी रह जाती है।

इस व्यस्त और उदासीन दुनिया में अपनी आवाज को बचाए रखना ही सही मायने में बुद्धिमानी है। अपने विचारों और संवेदनाओं को खुद में संजोए रखना चाहिए, क्योंकि यह दुनिया इतनी मशगूल है कि उसे दूसरों की आवाज सुनने की फुर्सत ही नहीं है। उस व्यक्ति का, जो सच्चाई और अनुभव से भरा हुआ है, लेकिन उसे यह भी मालूम है कि उसकी आवाज को कोई सुनने वाला नहीं है।

दुनिया इतनी मदहोश है कि हर कोई अपनी आवाज में ही खोया हुआ है। समय हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में हमें दूसरों से उम्मीदें कम रखनी चाहिए और खुद की आवाज पर भरोसा करना चाहिए।

वे अपनी सच्चाई को खुद में संजोकर रखें और दूसरों से ज्यादा अपेक्षाएं न रखें, क्योंकि आज की दुनिया में हर कोई अपनी समस्याओं में इतना व्यस्त है कि दूसरों की आवाज सुनने का समय नहीं है।