सपने विहीन मुर्दों का
कब्रिस्तान
मुर्दा जिस्मो की पनाहगाह, कब्रिस्तान कयामत के रोज इंसाफ के इंतजार में
मुर्दे, जहां पाते हैं जगह इसी आस में मुर्दे सिर्फ वो नहीं जिनमें जान नहीं है
मुर्दे वे भी है जिनमें कोई सपने नहीं है कहने को तो मशीने भी जिंदा है
सिर्फ खुराक ही तो अलग है कुछ तेल पीती है कुछ बिजली खाती है
मुर्दा जिस्मों से भरे यह शहर यह गांव ज़रूरतों की ख्वाहिश में, पत्थरों से
आस लगाए बैठे हैं, जो खुद तालों में बंद है कहते हैं कि सपने वे नहीं है जो नींद में आते हैं
सच्चे सपने तो वे है जो नींद नहीं आने देते हैं मुर्दा जिस्मो की पनाहगाह, कब्रिस्तान
सच्चे सपनों की पहचान बहुत मुश्किल है सच्चे सपने भी उलझ कर रह गए
अफसोस, सिर्फ जरूरतों की ख्वाहिश में सिर्फ सपने ही है हमारे जिंदा होने की पहचान
जो किसी मुर्दा जिस्म के नियंत्रण में ना हो तो चलो आज फिर बुनते हैं सपनों को
जिंदा कौम में शामिल हो जाने को, वरना मुर्दा जिस्मो की पनाहगाह, कब्रिस्तान
अल्फ़ाज़-ए-रूह
Daystarweb